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>अच्छाईयों को भी बुराईयों का लिबास पहना कर पेश करने वालों की इस देश में कमी नहीं है! कड़ी मेहनत, असीम सहनशीलता, दूरदृष्टि और देश के प्रति वफादारी का उदहारण पेश करते हुए मनमोहन जी ने सब सहन किया ताकि देश में अराजकता न फैले! बुद्धिजीवियों और इतिहासकारों को निष्पक्ष विश्लेषण करना चाहिए! अमर उजाला में प्रकाशित बरु साहेब की पुस्तक के निम्न बिन्दुओं से तो ये ही प्रकट होता है!
-प्रधानमंत्री पद संभालते ही मनमोहन सिंह के लिए दिक्कतें शुरू हो गई थीं। उनके कार्यालय के वरिष्ठ अफ़सर जैसे इंट्लिजेंस ब्यूरो के पूर्व प्रमुख एमके नारायणन और जूनियर मंत्री पृथ्वीराज चौहान की वफ़ादारी उनसे ज़्यादा सोनिया गांधी के प्रति थी।
-सरकार चलाने में सोनिया गांधी की दख़लंदाज़ी इस हद तक थी कि 2009 में सत्ता में वापस आने के बाद उन्होंने मनमोहन सिंह से पूछे बिना प्रणव मुखर्जी को वित्त मंत्री का पद ऑफ़र कर दिया था जबकि वो सीवी रंगराजन को वित्त मंत्री बनाना चाहते थे।
-मनमोहन सिंह एनएन वोहरा को प्रधानमंत्री का प्रधान सचिव बनाना चाहते थे लेकिन सोनिया एक रिटायर्ड तमिल अफ़सर को इस पद पर देखना चाहती थीं। ज्ञातव्य हो कि एन० एन० वोहरा जी ने ही सब से पहले अपराधियों, राजनयिकों और बुरोक्रेट्स के ‘संघ’ का इलाज करने की जरूरत जताई थी!
-मनमोहन सिंह को गपशप और स्मॉल टाक का कोई शौक नहीं था यहाँ दिलचस्प बात ये थी कि मनमोहन सिंह को उन लोगों का साथ अधिक पसंद था जो बातूनी हुआ करते थे।
-केंब्रिज विश्वविद्यालय में अपनी पढ़ाई के दौरान वो अपने सभी सहपाठियों से पहले उठ कर स्नान कर लिया करते थे |
-सुबह जल्दी उठने की अपनी आदत के कारण ही प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वो साढ़े आठ बजे नाश्ता कर लेते थे।
-वाजपेयी अपना कार्यकाल समाप्त होते-होते थोड़े धीमे पड़ गए थे। उनका दिन देर से शुरू होकर जल्दी ख़त्म हो जाया करता था लेकिन मनमोहन सिंह सुबह नौ बजे से रात नौ बजे तक काम करते थे। हाँ बीच में दिन के खाने के बाद वो एक घंटे की नींद ज़रूर लेते थे। दिन में 11 घंटे काम करते थे!
-खाने के मामले में मनमोहन सिंह को कोई आडंबर पसंद नहीं था। वो अक्सर शाकाहारी खाना ही खाते थे।
-2004 में उन्हें सबसे पहले सुनामी का पता चला और बीबीसी सुनने के बाद ही उन्होंने कैबिनेट सचिव को डिज़ास्टर मैनेजमेंट ग्रुप की आपात बैठक बुलाने का आदेश दिया।
-मुज़फ़्फ़र राज़मी के एक शेर को वो बहुत पसंद करते हैं,
एक जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने
लमहों ने ख़ता की थी, सदियों ने सज़ा पाई।
-मीडिया से मिलने से पहले बारू अक्सर उनसे पूछते थे कि क्या आप फ़्रेश होना चाहेंगे। इस पर मनमोहन सिंह का जवाब होता था, ’क्या शेर कभी अपने दांत साफ़ करता है।’
-मनमोहन सिंह के अपने मंत्रिमंडल के लोग जैसे एके एंटनी, अर्जुन सिंह और वायलार रवि उनके सबसे बड़े आलोचक थे!
-बहुत कम लोगों को पता है कि भारत निर्माण कार्यक्रम प्रधानमंत्री कार्यालय की सोच की उपज थी और इसका मसौदा संयुक्त सचिव आर गोपालकृष्णन ने तैयार किया था।
-मनमोहन सिंह से ग़लतियाँ तभी हुईं जब सोनिया गांधी और कांग्रेस ने उनके फ़ैसलों में हस्तक्षेप करना शुरू किया। उदाहरण के लिए 2009 के चुनाव के बाद मनमोहन ए राजा और टीआर बालू को अपने मंत्रिमंडल में नहीं लेना चाहते थे लेकिन उन्हें पार्टी के दबाव में राजा को मंत्रिमंडल में शामिल करना पड़ा था।
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